करीम भाई / मदन कश्यप
कोई लोहा पीटता है
कोई छाती पीटता है
पर यह क्या करीम भाई
तुम हवा को पीट रहे हो
लोहा पीटना पूरा काम है
और छाती पीटना मुकम्मल बेबसी
मगर यह हवा को पीटना
कुछ लोग हवा बाँधना जानते हैं
तो कुछ हवा पलटना
कोई हवा उड़ाता है तो कोई हवा बनाता है
कुछ बचे-खुचे लोग कम से कम हवा की चाल पहचानते हैं
एक तुम हो कि हवा को पीट रहे हो
घण्टों हवा में लाठी भाँजते-भाँजते
पसीने से लथपथ हो रहे हो
हवा तो वैसे भी पिटती रहती है
बन्दूक की गोली छाती भेदने से पहले
हवा को छेदती है
चाँटा हवा को पीट कर ही
किसी के गाल पर बरसता है
फिर भला हवा को अलग से क्या पीटना
मान गया करीम भाई
जब हर चीज़ के साथ हवा पिटती है
तो क्यों न कोई हवा को पीटे
कि इसके पिटने से एक दिन
वह भी पिट जाएगा
जिसे हम पीटना चाहते हैं !