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करुणा की कविता / तादेयुश रोज़ेविच / विनोद दास
Kavita Kosh से
सदियों से
वे कवियों पर थूकते रहे हैं
सदियों से
वे पृथ्वी और नक्षत्र साफ़ करते रहे हैं
वे अपने चेहरे भी साफ़ कर लेंगे
एक कवि को ज़िन्दा दफ़न कर दिया गया ।
भूमिगत नदी की तरह
वह अपने भीतर बचा रखता है
चेहरे
नाम
उम्मीद
और अपना देश
धोखा खाया एक कवि
आवाज़ें सुनता है
अपनी ख़ुद की आवाज़ सुनता है
चारों और देखता है
भोर में जगे आदमी की तरह
लेकिन एक कवि का झूठ
बहुभाषी होता है
होता है चिरस्मरणीय
बेवल की मीनार की तरह
यह विकराल होता है
और मरता नही
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास