करुणा की सजीव सी प्रतिमा हो तुम / विजयदान देथा 'बिज्जी'
ऊषे!
करुणा की सजीव-सी प्रतिमा हो तुम
आखिर नारी ही का तो है दिल!
जाने किस अज्ञात
अपरिचित लोक से
भय-उत्पादक अन्धकार का
सघन श्यामल सैन्य समूह लेकर
चढ़कर हीरक तारक-सिंहासन पर
शशि आकर करता है शासन
जग के पशु विहग और मानव पर
मृतक-सा बना विमूर्छित कर!
तब तुम करुणा कर
उस निरंकुश नृप निष्ठुर को
सिंहासन से वंचित कर
हर प्राणी में नव चेतनता
नव जागृति नव जीवन भर
हो जाती अदृश्य फिर!
तब आकर प्रचण्ड मार्तण्ड
ज्वाला-सा जल-जल प्रतिपल
निष्ठुर अति क्रूर-सा बन
करता जगती पर शासन!
निरन्तर जी भरकर कठिन
परिश्रम कराता है सब दिन!
जब सभी पशु विहग और मानव
कर त्राहि-त्राहि चिल्ला उठते हैं
अव्यक्त स्वर में
उस क्रूर निर्मम शासन से उकता कर!
तब सुनकर उनकी करुण पुकार
तुम पुनः आकर अम्बर पर
उस जलते पाषाण-हृदय
अग्निमय रवि की
शत् शत् क्रूर किरणों के कर से
दिलाती हो छुटकारा
जब सकल विश्व हो जाता विकल!
ऊषे!
करुणा की सजीव-सी प्रतिमा हो तुम
आखिर नारी ही का तो है दिल!