भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करुण गीत / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 सुनि-सुनि कोकिलक करूण गीत,
कुसुमित कानन के देखि रहल अछि
आइ श्रवित लोचन समीत
अछि आवि गेल श्रृंगार सेज पर
ज्वलित मसानक रौद्र रूप
वर दंत दलक हासक विलास मे -
वनल विभत्सक अंधकूप
भ‘ गेल सुवर्णक शौर्य शिखर पर
शांति सागरक सुलभ जीत
हमरा भावक सुकुमार पाश मे
आयल प्रेमक रम्य फूल
कयलहॅु जहिना किछु आलिंगन
चुभि गेल अनेको वक्रशुल
उड़ि गेल गगन दुर्लभ सुगंध
झड़ि गेल धरा मकरंद पीत।
सौन्दर्यक भूमि मरूभूमि भेल,
रमणीय देवसरि सुखा गेलि
आयलि सुषमा दू छनक लेल
हमरो जीवन के दुखा गेलि
संचित दुःखक रंजित सभटा,
प्रेमकमधु देखू भेल तीत
कटि रहल किए ई कला इन्दु
घटि रहल किए जीवन प्रकाश,
रजनीक रूदन विगालित प्रभात
कऽ रहल किए अतिशय उदाश
भऽ रहल ज्ञान जन्मक मकान
नहि रहत मसानक सात बीत