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करूँ अणथक जतन / कन्हैया लाल सेठिया

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चूकतां पाण
दीठ
हुज्यावै अलोप
साच
पड़ ज्यावै
पाछो
खण्योड़ै खाड में
मन
कोनी छोडै
निज नै पीड़णै री
लत
करै निरथक चिंतण
गमावै
हू’र विकासं रै
वसीभूत
उरजा संजीवण
करूं खिण खिण
अनथक जतन
नहीं मुरछीजै
म्हारो मन !