करूँ कुछ भी, कहूँ कुछ भी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग खमाच-ताल दादरा)
करूँ कुछ भी, कहूँ कुछ भी, चाहता पर मैं तुम्हें ही।
जनक-जननी, हित-स्वजनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही॥
पुत्र-मित्र, कलत्रगणमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही।
विषय-इन्द्रिय-बुद्धि-मनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही॥
शक्ति-सुख-सपन्न तनमें, चाहता हूँ मैं त्तुम्हें ही।
अतुल-वैभव, विपुल धनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही॥
सुखद शुभ सुन्दर सदनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही।
कीर्ति-यश-कमनीय धनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही॥
भूमि-जल-पावक-पवनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही।
सब जगह व्यापक गगनमें, चाहता हूँ मैं तुम्हें ही॥
तुहें जानूँ, या न जानूँ, चाहता पर मैं तुम्हें ही।
चाहता मैं पूर्ण सुख हूँ, चाहता इससे तुम्हें ही।
चाहता मैं नित्य सुख हूँ, चाहता इससे तुम्हें ही॥
चाहता मैं अमर-जीवन, चाहता इससे तुम्हें ही।
चाहता स्वाधीन-जीवन, चाहता इससे तुम्हें ही॥