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करें कभी को‌ई मेरा अति / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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   (राग भैरव-ताल कहरवा)

 करें कभी को‌ई मेरा अति मान-समादर-स्तुति-सत्कार।
 अथवा परुष वचन कह, दारुण पदत्राणोंसे करे प्रहार॥
 दोनोंमें ही देखूँ मैं, प्रिय श्याम! तुहारा सुन्दर रूप।
 हँसकर स्वागत करूँ हृदयसे, प्राप्त करूँ सुख परम अनूप॥
 कभी न भूलूँ, भरे तुम्हीं हो प्यारे! सबमें सदा विचित्र।
 लीलामय दिखलाते लीला, बनकर घोर शत्रु, शुचि मित्र॥
 जो कुछ है, सब तुम हो केवल, होता जो, सब लीला-लास्य।
 घोर भयानक, परम मधुर तुम करते लीला-क्रंदन-हास्य॥
 देख तुम्हें मैं सदा सर्वगत, सत्‌‌-चित्‌‌-‌आँनदमय, स्वच्छन्द।
 करूँ सदा अभिनन्दन सबका, अति विनम्र मन भर आनन्द॥