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करो मेहनत मगर हक है न जीने का यहाँ / रंजना वर्मा
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करो मेहनत मगर है हक न जीने का यहाँ
न कोई थामता है हाथ गिरते का यहाँ
लगाओ जान अपनी और दो खुद को मिटा
नहीं अब मोल मिलता है पसीने का यहाँ
नहीं कोई यहाँ है जो सुने फ़रियाद को
असर पड़ता नहीं है आह भरने का यहाँ
मिले जो जख़्म सब नासूर हैं बनने लगे
चलन है ही कहाँ अब जख़्म सीने का यहाँ
दिखावा दोस्त का कर के चला ख़ंजर रहे
नहीं सोचा कभी अंजाम रिश्ते का यहाँ
खड़े हो के दुराहे पर लगे यह सोचने
किधर काबा किधर है जाम पीने का यहाँ
भँवर में डोलती कश्ती करें अब क्या भला
नहीं जब नाखुदा क्या हो सफ़ीने का यहाँ