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कर्णहर-तुम्हारी रेत पर / हरानन्द

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कर्णहर तुम्हारी रेत पर
सो गये
सपने वसंती
दूर जब तक
बावली की सीढ़ियों पर
गुनगुनाती
लाजवन्ती।

हरित
पुष्पित वीथिकायें
स्पर्शकातर
दिन बितायें
पुष्प-रेणु प्राप्त करने
तितलियां भी
किधर जायें।

क्यों न हम सब
आज मिलकर
पक्षियों के साथ उड़कर
तरुण रवि रश्मियों से
थोड़ा
सिन्दूरी रंग चुरायें।