कर्ण-चौथोॅ सर्ग / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’
देवराज इन्द्र महा ईष्यालू
सत्य हरिश्चन्द्र केॅ डोम हाथ बिकैलकै
वोही इन्द्रें अहल्या केॅ
पति गौतम सें शाप देवैलकै
हुनके अभिमान चलतें
देवता सिनी असुरोॅ सेॅ दुर्गति पैलकै
त्वष्टा पुत्रा विश्वरूप केॅ
ब्रज प्रहार करि केॅ मारलकै
वृत्रासुर सेॅ मित्राता करी केॅ
बादों में वोकरोॅ हत्या करलकै
ब्रह्महत्या के पाप सेॅ दबलोॅ,
प्रतिज्ञा भंग सेॅ विहीन होलै
अपमान, पाप के बोझा नीचें
इन्द्र अति व्याकुल होलै
अति लज्जित होय देवराज इन्द्र
सबसेॅ अदृश्य होलै
यही इन्द्रें जानै रहै कि अर्जुन,
कर्ण सेॅ जीतेॅ नै सकै छै
कर्णों हाथें ही अर्जुन के
रणभूमि में मरन हुवेॅ सकै छै
कैन्हें कि वीर कर्ण के देहोॅ में
जन्मजात कवच आरो कुण्डल छै
अर्जुन केॅ बचावै लेली
दानी कर्ण केॅ अवश्य छलना छै
ब्राह्मण भेष धरी केॅ इन्द्र
महादानी कर्ण के पास पहुँचलै
पिता सूर्य देव ने कर्ण केॅ
धोखेबाज इन्द्र के चाल बतैने छेलै
दानवीर कर्ण सेॅ ब्राह्मण भेष धरी इन्द्र ने
कवच कुंडल मांगने छेलै
सब रहस्य केॅ जानते हुवेॅ भी
कर्ण ने वू भिखारी के कवच कुंडल देने छेलै
अद्भुत दानशीलता देखी केॅ
देवराज इन्द्र अति चकित भेलै
प्रशंसा के पूल बांधी केॅ
बदला में वरदान दै लेॅ तैयार भेलै
जों तोंय प्रसन्न छोॅ तेॅ आपनों
शत्राु संहारक शस्त्र ‘‘शक्ति’’ दै
‘शक्ति’ शस्त्र के साथें शर्त छेलै,
एक शत्राु मारी केॅ हमरोॅ पास आबी जैतै