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कर्ण-पाँचवां सर्ग / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’

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शांतिदूत श्री कृष्ण के मानलकै नै दुर्योधन बात
कुन्ती केरोॅ पास गेलै शांतिदूत पश्चात।

समाचार सुनैलकै कृष्णें कुन्ती केॅ लागलै आघात
युद्ध तेॅ अनिवार्ये छै पांडव के रक्षा तोरे हाथ ।

शांति वार्ता विफल होलै, शांतिदूत लौटाय
युद्ध तेॅ अनिवार्य भेलै, सेनापति चुनवाय ।

पाण्डव दल के सेनापति, धृष्टद्युमन केॅ बनाय
कौरव दल के नायक, भीष्म पितामह भाय ।

भीष्म नें कहने छेलै, लाखों वीर शिकार
पांडव सुत नै मारौ, यहेॅ हमरोॅ विचार ।

हमरोॅ राय के विरोधी, हठी घमंडी कर्ण
जब तांय भीष्म जिंदा छै, रण करतै नै कर्ण ।

कर्ण के प्रतिज्ञाा छेलै, अर्जुन मार गिराय
आदमी केरोॅ सोचलोॅ, ईश दै छै मिटाय ।

कुन्ति अति व्याकुल हो उठलै
वंश सर्वनाश के बात सोचेॅ लागलै।

पुत्रा सुरक्षा करै के वास्तें गंगातट गेलै
जहाँ कर्ण रोजाना संध्या वन्दन करै छेलै।

कुन्ति केॅ ई बात पहिनें सें मालूम छेलै
जैन्हें गंगातट पर पहुँचलै।

संध्या वन्दन करतें कर्ण दिखाई पड़लै
पूरब तरफें मुँह आरो दोनों हाथ जोड़लोॅ छेलै।

दानी कर्ण तेॅ धियान मगन खड़ा छेलै
कुन्ती वोकरोॅ पीठी सेॅ सटी खड़ी हो गेलै।

कर्ण उत्तरीय आपनोॅ सिर पर राखी लेलकै
दू पहर तक कर्ण जप करतें रहलै।

जप पूरा होलै, पीछु मुड़ी केॅ देखलकै
कुन्ती केॅ देखी केॅ हुन्ही बड़ी अचरज करलकै।

गौर करला पर बुझलकै
पांडव माता कुन्ती छेकै,
बड़ी नम्रता के साथें
कर्ण सें कुन्ती बात करलकै।

राधा, अधिरथ पुत्रा
तोरा नमस्कार करै छिहौं,
कर्णें कहलकै-आज्ञा करोॅ
तोरोॅ कोन सेवा करिहौं।

तोंय केवल सुत पुत्रा नै
राधा माता, अधिरथ पिता नै छौं,
सूर्य अंश सेॅ हम्मी
तोरा जनम देने छिहौं।

बेटा तोरा देहोॅ में
जन्मों सेॅ ही कवच-कुण्डल,
तोंय देव कुमार, दानवीर
छौं भुजा में बल।

आपनौ माय केॅ नै पहचानलेॅ,
गेल्हेॅ तोंय कौरव के दल,
अभियो चेती जा बेटा,
आवी जा पांडव के दल।

पाँचोॅ छोटोॅ भाय तोरोॅ
अधीन में रहतौं,
पाँचों के साथें रहला पर
तोरोॅ भाव भी बढ़ी जैतौं।

धर्म रक्षार्थ माता-पिता केॅ
संतुष्ट करै लेॅ पड़तौं,
सब मिली केॅ वीरता सेॅ लड़ी केॅ
राज प्राप्त करै लेॅ पड़तौं।

एतना बात सुनत्हैं कर्ण के
मनों में विचार उठलै,
सूर्य भगवानें भी माय के
बात के अनुभोदन करलकै।

सूर्य देव परीक्षा लै छै ई मनों में बात अइलै
फिर भी दिल पर पत्थर राखी के कर्ण बोललै।

हे माँ ! तोरोॅ बात सब धर्म विरुद्ध छौं
अधर्म हो जैतै माय, जों तोरोॅ बात मानै छौं।

क्षत्रिय कर्त्तव्य पर ई बड़ी कुठाराघात छौं
तोंय जनम देने छोॅ, ई हम्में नै जानै छौं।

जनम देल्हेॅ तोंय पय पान नै करैल्हेॅ
मंजूषा में बंद करी केॅ गंगा में बहाइये देल्हेॅ।

माय के हिरदय में ममता होय छै,
तोंय तेॅ पत्थर बनिये गेल्हेॅ,
बेटा के प्रति माय के जे कर्त्तव्य होय छै,
तोंय तेॅ नहियें निभैल्हेॅ।

आपनों बेटा के भलाय के खातिर
तोंय अइलोॅ छोॅ,
हमरोॅ मान-अपमान पर
तनिक धियान नै दै छोॅ।

दुर्योधन के साथ छोड़ी केॅ
पांडव सेॅ मिलै लेॅ कहै छोॅ,
ऐसनों करला पर क्षत्रिय सेॅ
कायर कहवाय लेॅ चाहै छोॅ।

जौनें हमरा आय तांय
आपनों नमक खिलैलकै,
धन-सम्पति दै केॅ हमरोॅ
गौरव बढ़ैलकै।

भारी सभा में जौनें
अंगदेश के राजा बनैलकै,
युद्ध सागर केॅ पार करैलेॅ
हमरा ही नैय्या बनैलकै।

युद्ध सामने आवी रहलोॅ छै
मझधार में कैसें छोड़ियै,
समय पर दगा दियै,
पहिनें सहायता के दम भरलियै।

ई कैसनों तोरोॅ सलाह छौं माय
कैसें भूलियै दुर्योधन के नमक खाय।

परान आहुति दै केॅ भी रीन चुकाय
पांडव के विरुद्ध लड़ै के व्रत रखाय।