भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कर्मठ गधा / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घोड़ों का क़द ऊँचा है

माना पद भी ऊँचा है ।

गधा नहीं फिर भी कम है

ढोता बोझ नहीं ग़म है ।

घोड़ा रेस जिताता है

कुछ जेबें भर जाता है ।

जो-जो काम गधा करता

घोड़ा कब कर पाता है ।

धीरज का है रूप गधा

नहीं क्रोध में जलता है ।

खा-सूखा खाकर भी

बड़ी मस्ती में चलता है ।

मान-अपमान से परे गधा

कभी नहीं शोक मनाता है ।

अपने ऊँचे मधुर स्वर में

गुण प्रभु के गाता है ।

सुख-दुख से निरपेक्ष गधा

सचमुच सच्चा संन्यासी है ।

जिस हालत में भगवान रखे

वही हालत सुख-राशि है ।

गधा कर्म का पूजक है

सुबह जल्दी उठ जाता है ।

बीवी सोती रहती है

गधा ही चाय बनाता है ।

एसी चैम्बर में घोड़ा

घण्टी खूब बजाता है ।

गधा देर में जब सुनता

तब घोड़ा चिल्लाता है ।

दफ़्तर में जाकर देखो

गधे डटकरके काम करें ।

घोड़ा फ़ाइलों में छुपकर

जब चाहे आराम करे ।

घोड़ा खाता है तर माल

गधा बस पान चबाता है ।

चाहे जितना भी थूके

न पीकदान भर पाता है ।

जिस दिन गधा नहीं होगा

दफ़्तर बन्द हो जाएँगे ।

आरामतलब जो भी घोड़े

सारा बोझ उठाएँगे ।

इसीलिए मैं कहता हूँ-

गर्दभ का सम्मान करो ।

राह-घाट में मिल जाए

कभी न तुम अपमान करो ।