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कर्मां मैं लिख राखी ठोकर खानी बाबा जी / मेहर सिंह

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अंजना कहती है-

के बुझैगा दुःख की कथा कहानी बाबा जी।
कर्मां मैं लिख राखी ठोकर खानी बाबा जी।टेक

बाप के घर पै जाण पटी ना छाया धूप की
कह्या करैं सैं खा कर्म की रोवै रूप की
रत्नपुरी मैं पवन भूप की राणी बाबा जी
ब्याह कै दिया दुहाग कर्म की हाणी बाबा जी।

देण दुहाग आऐ पति मेरे बारा साल मैं
जिस के ख्याल मैं पड़ैं नैन तै पाणी बाबा जी।
एक बै सुण कै फेर सुणी ना वा बाणी बाबा जी।

जंगल कै म्हां चलते चलते पायां मैं पड़गे छाले
इसे दुःख तै आछा ईश्वर माटी नै संगवाले
खा कै गम के भाले समय बिताणी बाबा जी।

उन के बेड़े पार हुए जिनके हृदय राम रमै
माया के विश भूत ठिकाणें जीव ना जमै
मेहर सिंह या समै आवणी जाणी बाबा जी
एक दिन सब नै खा ले या मौत निमाणी बाबा जी।