कर्म बेदी पर रचीं गाथा कु / बलबीर राणा 'अडिग'
कर्म बेदी पर रचीं गाथा कु दुसरू क्वी परमाण नि होंद
संघर्षों से कमयूँ कर्मफल, देजाक फोकट समान नि होंद।
बिगैर दोषक न ह्वो क्वी, इनि आज तलक ह्वे नि सकी
गाते खैजी दुसर पे सराण वला से, बडू क्वे बेमान नि होंद।
मथि वाळा टेम च त्वे मा त,जरा मुड़ीs ऐ देखि ल्ये जरा
हवा मा रोणे बात नि, मनखी बणि ज्योंण आसान नि होंद।
मुश्किल क्वे हैकू खड़ा नि कर्द, अपणी करणी काम छिन
टकटकी कांडों पे लगीं, फूलोँ बगवान कैकू ध्यान नि होंद।
क्वो बतालु कैका स्वेणा सुफल होणा ह्वला ये धर्ती फर
लौछि की लुटदा नि, कने गांधिक स्वेणो हिंदुस्तान नि होंद।
लव्कूँ खून चूसी बणायूं महल तें, घोर कते न समझा
वों कूड़ा पर मन्ख्यत नो कु, क्वे रोशनदान नि होंद।
जे वैभव पे सब्यून जिंदगी खपे, वा किरायो घोर मात्र च
गौर से देखा ते पर, बाबेक जागीदारी क्वे निशान नि होंद।
सम्पूर्ण त वु बरमा ब्बी नि छों, जैन ये संगसारे रचना करिन
स्वने लंका राख नि होंदी, अगर रावण पे अभिमान नि होंद।