कर कै नेत्र लाल द्रोपद बात कह मत बोदी / मेहर सिंह
घरां बिराणै लड़न लागगी तनै कती करी ना सोधी
कर कै नेत्र लाल द्रोपद बात कह मत बोदी।टेक
आज पति नै शाल बतावै तनै कती शर्म ना आई
उस दिन नै गई भूल द्रोपद चीर बांध कै ब्याही
दुर्योधन को अन्धा कैह कै पाणी में आग लगाई
तेरे कारण पांचों पांडों भरते फिरै तवाई
करी जेठ संग तनै अंघाई या तै इज्जत म्हारी खो दी।
दुर्योधन कै ताना मार्या कैहकै कड़वा बोल परी
मन मैं जाल जूए का बण कै कर दिया बिस्तर गोल परी
शकुनि धोरै धर्मराज की खुलवा दी कती पोल परी
उसी तरह से आज मेरा तूं रही कालजा छोल परी
ईब दिखा द्यूं खोल परी जो या बेल नाश की बो दी।
कस कस ताने मत मारै ना बोल सह्या जावैगा
जिस नै कैह सैं आज हिजड़ा वो रण मैं धूम मचावैगा
धनुष बाण ले अपने कर तै शीश काट कै ल्यावैगा
पहल्यां केश धुलां दे तेरे फेर बेटे ने ब्याहवैगा
आकै तनै दिखावैगा थारी कितनी खाली गोदी।
बिगड़ी मैं ज्ञानी माणस भी मुर्ख पै कान कटा ले
कैह कै कड़वे बोल द्रोपद अपणी हवस मिटा ले
टैम आए पै तनै दिखा द्यू बाणैं सैकड़ों साले
लखमीचन्द की कृपा तै तू काट जाप के ना ले
जाट मेहर सिंह औम मना ले या तै रांड़ भतेरी झोली।