भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कर दिया है तिमिर ने दुर्बल बहुत / लाला जगदलपुरी
Kavita Kosh से
अल्प-जीवी पुष्प इतना कर गया,
सूर्य को शबनम पिला कर झर गया ।
साथ मेरे सिर्फ़ सन्नाटा रहा,
चाँद सिरहाने किरन जब धर गया ।
कर दिया है तिमिर ने दुर्बल बहुत,
मन अभागा रौशनी से डर गया ।
लहलहाई ज़िन्दगी की क्यारियाँ,
किंतु सोने का हिरण सब चर गया ।
हृदय तड़पा तो छलक आए नयन,
स्नेह सारा हृदय हेतु निथर गया ।
क्या करे कोई सुराही क्या करे,
यदि किसी के कण्ठ में विष सर गया ।