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कर दे गुमराह ऐसा इशारा न कर / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

कर दे गुमराह ऐसा इशारा न कर
हमसफ़र बन किसी का किनारा न कर

छीन कर दीन-दुर्बल की बैसाखियाँ
हो अपाहिज, उसे बेसहारा न कर

उम्र भर के लिए चैन जो लूट ले
भूल जीवन में ऐसी दुबार न कर

बाग़बां के भरोसे चमन छोड़ कर
यार! गर्दिश में अपना सितारा न कर

चापलूसों की बातों मे आकर कभी
दिल का अनमोल खाली पिटारा न कर

हर घड़ी दे सके प्यार की रौशनी
दूर नज़रों से ऐसा नज़ारा न कर

ज़िन्दगी के उसूलों से कर दे जुदा
बात कोई भी ऐसी गवारा न कर

उठ के हिम्मत से अपना मुक़द्दर बदल
भीख की रोटियों पर गुज़ारा न कर

गीत जिसने दिए हैं तुझे ऐ ‘मधुप’
दर्द को दिल की दुनिया से न्यारा न कर