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कर नवनीत लियें नटनागर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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कर नवनीत लियें नटनागर।
मधुर सरल सिसुभाव सखनि सँग निरतत निरवधि सर्वसुखाकर॥
कटि कछनी मुरली मधु खोंसे, कुंचित केस मयूर-पिच्छधर।
कठुला कण्ठ, बघनखा सोहत, बाजूबंद, हार-दुति मनहर॥
मधुर नयन मोहत मुनि-जन-मन, कुंडल रत्न स्रवन अति सुंदर।
तिलक भाल सुषमा अनुपम छबि जन-चकोर-दृग-हरन सुधाकर॥