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कर रहया सै धुर दिन तै खोटी मालक / जयसिंह

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कर रहया सै धुर दिन तै खोटी मालक बेईमान हड़प कमाई करकै

आदि काल मै बणा कबीले मानव रहया करै था रै
जो कुछ दु:ख सुख था आपस मै मिलकै सहया करै था रै
प्रकृति के परकोपां नै ईश्वर कहया करै था रै
कन्द मूळ फळ ल्यावण नै जंगल मै मरद फिरया करते
पत्थर के हथियार बणां सारे शिकार करया करते
घर में औरत काम करैं वे सबका पेट भरया करते
फेर या लगी वर्ग की खेती सोटी तम करे कती गलतान बात हवाई करकै

जब खेती का चलन हूया जब कब्जे पड़ण लागगे रै
न्यारे-न्यारे टोळ बणा आपस मैं लड़न लागगे रै
ठाढ्यां के कब्जे होगे बोदयां नै घड़ण लागगे रै
फिर थोड़े से मालक होगे ज्यादा दास बणाये थे
ना कोये भी अधिकार मालकां नै घणे सताये थे
फिर दासां ने विद्रोह कर दिया जब मालक घबराये थे
फेर लई बिठा धर्म की गोटी ये भका लिये इंसान घणी सफाई करकै

फिर सामन्ती प्रथा होगी शोषण जारी राख्या रै
अधिकार पैदा पै इनका और ना अधिकारी राख्या रै
जात धर्म म्हं बांट के अपणां पलड़ा भारी राख्या रै
जब मुद्रा का चलन हुआ पूंजी की शक्ति होगी रै
लोकतंत्र का लोभ दिखा वा सामन्तां नै खोगी रै
फिर पूंजीवादी चक्र चाल्या दुनिया आन्धी होगी रै
फेर भी म्हारी रहगी अक्कल मोटी ना राख्या अपणा ध्यान मरे सहम लड़ाई करकै

ईब सारे साधनां पै होगे कब्जे पूंजी आळां के
काम करणिये माणस तै इब रोड़े होरे गाळां के
म्हारे धोरै धेला ना ये मालक होरे माळां के
जमीन खान कारखाने मैं हम कमा-कमा कै मररये सां
खाली जेब पड़ी म्हारी हम इनकी झोली भररये सां
कट्ठे होकै लड़ो लड़ाई क्यूं बिन आई मररहे सां
‘जयसिंह’ बात नहीं या छोटी थारा कती नहीं कल्याण घणी समाई करकै