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कर रहे गठजोड़ / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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किस कदर मिथ्याचरण
हमने लिए हैं ओढ़
सत्य दर्शन के सभी
शीशे दिए हैं तोड़

पुण्य के सिर पाँव रखकर
पाप खुलकर नाचता
और भावी कल्पना से
मन हमारा कॉंपता
पाप के उर में समाने
की मची है होड़

नेह के इस गॉव का
दूषित हुआ वातावरण
हो रहे कलुषित सभी के
आजकल अंतःकरण
रीतियाँ पगडंडियों से
मुख रही हैं मोड़

मौन साधे एक युग से
सत्य कोने में पड़ा
पुज रहा पाखण्ड जग में
धर्म पर पहरा खड़ा
छल कपट नेपथ्य में अब
कर रहे गठजोड़