भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कर रहे निवेदन थे प्रियतम! “वह प्राण नाटिका रच डालो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
Kavita Kosh से
कर रहे निवेदन थे प्रियतम! “वह प्राण नाटिका रच डालो।
गुनगुना रही थी जिसे कभीं उसको अब सप्तम स्वर गा लो।
सखि कलित केलि का हो सुखान्त अभिनय का रहस प्रान्त अनुपम।
मानवती चन्द्रमुखी के मृदु पद को हो चूम रहा प्रियतम।
मलयानिल शुक-पिक-स्वन-स्मृति का प्रिय विस्मृत दीप जला लो तुम।
अनुराग-ललित का संशोधित प्रेयसि! संस्करण निकालो तुम।”
हो तुम नाटक-नट! कहाँ, विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥90॥