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कर लो / विजय वाते
Kavita Kosh से
पहले चाहत की तिश्नगी कर लो
फिर जो चाहो वो तुम सभी कर लो
बहते दरिया पे हक सभी का है
तुम ज़रा प्यास में कमी कर लो
बच्चा मासूमियत का झरना है
उसके हाथों से गुदगुदी कर लो
जिंदगी सिलसिला है सुख दुःख का
क्यों किसी सुख की त्रासदी कर लो
हाँ अगर काफिया तुम्हें न मिले
अपने उस्ताद की कही कर लो