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कलम की भाषा / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
अपनी ताकत का अहसास
कलम कई तरह से कराती है
लिखते लिखते जब
कल्पना और विचार के भी पार चली जाती है
अलग-अलग रंग होते हें
लिखने और बोलने के
यद्यपि दोनों क्रियाएँ
घटित होती हैं भाषा के ही लोक में
किन्तु ठहरो!
हो सकता है
भाषा एक ही माध्यम न हो कर
कई-कई माध्यमों का सन्निपात होती हो