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कलम के बिम्ब / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
हाथ की छठी उंगली है कलम
जैसे संवेदना की छठी इंद्रीय
पाँच पाल वाली एक नाव का
मनमौजी चप्पू है कलम
कलम तड़ित चालक है
ख़याल बिजली की तरह गिरता है
सारा विद्युत आवेश
उतर जाता काग़ज़ में
अदृश्य
भाषा में‘अर्थ’हो जाता
एकांगी निसैनी है कलम
रचना अमरता का वरदान है
लिखने के बाद सब कुछ
अ-क्षर हो जाता
एक जादुई जलप्रपात है कलम
जो गिरता है काग़ज़ की खाड़ी में
वह फूटता कहाँ से है
यह सोच-सोच कलम खाली हो जाती
शब्द अगर छाया हैं कलम की
तो प्रकाश का वह स्रोत कहाँ है?