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कलम के सिपाही - श्री मुंशी प्रेमचंद / नवीन सी. चतुर्वेदी

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क़लम के जादूगर!
अच्छा है,
आज आप नहीं हो|

अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते|

आप ने तो कहा था -
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए,
जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
- मार - मार - मार इस कमीने को|

पर,
आज कल तो,
खलनायक क्या?
नायक-नायिकाओं को भी,
जब चाहे ,
तब,
मार दिया जाता है|

फिर जिंदा कर दिया जाता है|

और फिर मार दिया जाता है|

और फिर,
जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,
इसे मरा रखा जाए?
या जिंदा किया जाए?

सच,
आप की कमी,
सदा खलेगी -
हर उस इंसान को,
जिसे -
मुहब्बत है,
साहित्य से,
सपनों से,
स्वप्नद्रष्टाओं,
समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं|

हे कलम के सिपाही,
आज के दिन -
आपका सब से छोटा बालक,
आप के चरणों में -
अपने श्रद्धा सुमन,
सादर समर्पित करता है|