बड़ी थी ललक करूँ देश की
सेवा निरंतर हो लगन,
एक सैन्यपुत्री हो के भी
थामा है शस्त्रों में कलम...
भले प्राण छोड़े देह लेकिन
प्रण कभी होगा न भंग,
लेकर कलम सा शस्त्र और
निष्पक्षता लेखन के संग...
इन सत्ता की गलियारों में
देखी सिसकती भारती
आँखें मिली, मुझसे कहा
तुझे लेखनी धिक्कारती...
मैंने शपथ ली है तिरंगे की
विपुल जन ज्ञान हो
योद्धा बनूं लेकर कलम
जनजागृति संधान हो...
चल क्रांति की ज्योति जला दूं
धुंध के पट खोल दूं
कर राह ज्योतिर्मय कलम से
हिन्द की जय बोल दूं...