भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलम / राम नाथ बेख़बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूख जाए
स्याही
टूट जाए कलम
और
कुंद पड़ जाए
इसकी पैनी धार
अगर यह
नहीं लिख सकती
फूल को फूल
ख़ार को ख़ार

जब-जब कलम
दिखाती है लाचारी
किसी दरबार से बँध
गाती है राग दरबारी
तब-तब कलम
अपने फर्ज़ से
करती है गद्दारी

कोई भी कलम
तभी
बड़ी होती है
जब वह न्याय के पक्ष में
सीना तानकर
बेख़ौफ़ खड़ी होती है।