भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कलाकार / अर्चना लार्क
Kavita Kosh से
कलाकार जब लिखता है प्यार
तो कितनी ही कटूक्तियों से दो-चार हुआ रहता है
जब वह लिखता है आज़ादी
तो जानता है उनके कैसे-कैसे फ़रमान हैं
जिनसे मुक्ति की कोशिश है कला
वह सुनता है धार्मिक नारों के बीच बजबजाती हुई
उनकी आवाज़
उनके थूथन की सड़न को धोने में काम आता है उसका प्यार
कलाकार होता जाता है ईश्वर का दूसरा नाम
हर बार
वह जानता है प्यार ही है जो बचता है ज़रा सा भीतर
लोगों की मुस्कानों में तेवर में
उदास होता जाता है कलाकार रोज़-ब-रोज़
हर किसी के भीतर मरता रहता है एक ईश्वर ।