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कलानिधि / महेन्द्र भटनागर
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रे मूक कलानिधि के मुख पर
मोहक सपनों की छाया है !
दिन में सोता है
निशि भर जगता है,
जिससे अलसाया खोया-खोया-सा
हरदम लगता है,
- पहचान नहीं पाओगे तुम
- कुछ अद्भुत स्वर्गिक माया है !
पहले बढ़ता, पर
फिर घट जाता है,
जिससे पल भर भी यह नहीं किसी के
वश में आता है,
- समझें क्या ? यह अस्सी घाटों
- का पानी पीकर आया है !