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कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो / रामकुमार वर्मा
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कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो।
ओस नहीं है, मेरे आँसू
से ही मृदु पद धो लो॥
कोकिल-स्वर लेकर आया है यह अशरीर समीर,
सुखमय सौरभ आज हुआ है पंचबाण का तीर;
मन में कितना है रहस्य ओ लघु सुकुमार शरीर!
व्योम तुम्हारे रुचिर रंग में डूबा है गम्भीर,
सुरभि-शब्द की एक लहर में,
तुम क्या हो, कुछ बोलो।
कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो॥