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कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता / साग़र सिद्दीकी

कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
मैं भी तिरे गुलशन में फूलों का ख़ुदा होता

हर चीज़ ज़माने की आईना-दिल होती
ख़ामोश मोहब्बत का इतना तो सिला होता

तुम हाल-ए-परेशाँ की पुर्सिश के लिए आते
सहरा-ए-तमन्ना में मेला सा लगा होता

हर गाम पे काम आते ज़ुल्फ़ों के तिरी साए
ये क़ाफ़िला-ए-हस्ती बे-राहनुमा होता

एहसास की डाली पर इक फूल महकता है
ज़ुल्फ़ों के लिए तुम ने इक रोज़ चुना होता