यामा ढली रजनी चली
खिल जा अरी वन की कली!
उषा अरुण का राग ले
नव किसलयों का साज ले
है थिरकती सत्वर बढ़ा पग
नाचती बन बावली।
खिल जा अरी वन की कली।
शीतल पवन है गा रहा
बंदी मधुप अकुला रहा
ले नमन में प्राची सपन
हैं झूमता आता तपन
हैं चाहती पर खोलना
अब नीड़ की विहगावली
खिल जा अरी वन की कली।