कल्पना चावला के प्रति / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
तुम्हारी तरह ओ कल्पना
सपनीली आँखोंवाली
कई लड़कियाँ होती हैं
पर उनके हाथ
नही चूम पाते चाँद-सितारे
और कभी - कभी एक टुकड़ा ज़मीन भी
तुम्हारी तरह
कई लड़कियों का बचपन
चिड़ियों संग भरता है लंबी उड़ान
चारदीवारियों में पंख फड़फड़ाते
देखा करता है अक्सर
मेहंदी –चूड़ियों से इतर भी
ढेरों सतरंगे ख़्वाब
तुम्हारी तरह
कई लड़कियाँ चाहती हैं
स्टोव या गैस की आग में झुलसाने के बजाय
एक रोमांचकारी मौत
और उतारना
अपनी जननी और जन्मभूमि का
थोड़ा-सा कर्ज
तुम्हारी तरह कई लड़कियों को
याद दिलाए जाते हैं
उनके कर्त्तव्य और संस्कार
अट्ठारह -बीस की उम्र में करने को ब्याह
पर यहीं तुममें और उनमें आ जाता है फर्क
वे चाहकर भी नहीं तोड़ पातीं
जाति-धर्म और देश के बंधन
तुम्हारी तरह
अब सीख रही हैं लड़कियाँ
बेड़ियों को खोलना
अपने सपनों के अंतरिक्ष में रखना कदम
और विनम्र चेहरे पर
बरकरार रखना हमेशा
एक सहज मुस्कराहट