भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कल्पना / कल्पना सिंह-चिटनिस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कल्पना,
सागर किनारे
रेत के घरौंदे की तरह
लहरों के ठोकर खाती है
और बिखर जाती है,
और मैं -
एक जिद्दी बच्चे की तरह।