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कल/आज/कल / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
बीता हुआ कल
हमारी नाक के नीचें
डैने समेटे
दुबक कर चुपचाप बैठा है
बाहर धूप बहुत तेज है
आने वाला कल
हमारी भौंहों पर
टांगे फैलाए
पसर कर बैठा है/आराम से
बेफिकर/अनिश्चित
जिसे देखने भर की कोशिश में
आंखो में दर्द होने लगता है
और हमारा आज
हमारे सिर का ध्वनिहीन पसीना
जो कान के पास से
रेला बनकर बह रहा है
निः शब्द !