कल का बचपन झंझोड़ता है मुझे
आज फ़र्दा से जोड़ता है मुझे
खानादारी का बोझ है सर पर
हर क़दम जो निचोड़ता है मुझे
अज़्म पुख्ता है मेरी हिम्मत का
वक़्त भी हाथ जोड़ता है मुझे
ये बुढापा भी क्या क़ियामत है
फिर से बचपन से जोड़ता है मुझे
जो मिला था तपाक से इक दिन
अब वो हीलों से छोड़ता है मुझे
जब भी जाता हूँ सूए-मयखाना
कोई आ आ के मोड़ता है मुझे
किस को बक्शा है वक़्त ने 'अंजुम'
अब बुढापा ही तोड़ता है मुझे।