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कल के लिए / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
एक शोकगीत की आवाज़ की तरह
पार करता हूँ इस रुके हुए दिन की दूरियाँ।
एक प्याली भर स्याही में डुबोता हूँ पलकें
आँख भर नींद के लिए।
इन्हीं पलकों से निकलकर सूर्य
बनाता आया है कल का दिन।