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कल ज़मीं पर आज-से दंगल नहीं थे / राकेश जोशी
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कल ज़मीं पर आज-से दंगल नहीं थे
आज जो भी हैं सफ़र में, कल नहीं थे
देखकर ये खुश हुआ मन, क्यारियों में
ढेर-सारी सब्ज़ियाँ थीं, फल नहीं थे
आज बस्ती में कहीं पानी नहीं है
कल तो पानी था मगर कल नल नहीं थे
थी सड़क चौड़ी बहुत, पर रास्ते में
वो पुराने पेड़, वो जंगल नहीं थे
फिर मरे कुछ लोग सर्दीे में वहाँ कल
क्या तुम्हारे देश में कंबल नहीं थे
जिस क़दर लोगों की थीं मजबूरियां कुछ
उस क़दर आकाश पर बादल नहीं थे
पाँव में छाले सभी के थे हज़ारों
पर किसी के ख़्वाब तो घायल नहीं थे
आज रौनक आ गई खेतों में फिर से
खेत तो कल भी थे लेकिन हल नहीं थे
ख़ूब-सारा वक़्त था औरों की ख़ातिर
बस, हमारे वास्ते कुछ पल नहीं थे