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कल तक जो फूली थी / नईम
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कल तक जो फूली थी
डाल वह फलों से है।
गरिमा के भार झुकी,
धरती पर लगी आँख,
ओसबूँद टपकाती
गीली हो गई पाँख।
धूप-छाँव बुनती-सी
राह मंजिलों से है।
पिघल गई जमी हुई
आई प्यासे घट तक,
उतरे पाखी-जोड़े
इस तट से उस तट तक;
लहरें सुगबुगा रहीं
पाल हलचलों से है।
शीश फूल माथे पर
सूर्य, नई पीढ़ी के।
चढ़े चले आते हैं
परम्परित सीढ़ी से;
ब्याह बरेखे गौने,
पीर क़ाफिलों से है।