Last modified on 16 अप्रैल 2018, at 19:45

कल तक तो यह तन था / सुनीता जैन

कल तक तो यह तन था
तन में
मान, ठिठोली
प्रणय कोप के
रंग गुड़हल ज्यों
लाल, सहेली

एक निमिष में
टूट गया सब
ना तन अब, ना
तन में सोंधी
सहज सुलगती
आँच, सहेली
राधा नहीं, कह राख, सहेली