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कल तक थे जो भरे-भरे / नईम
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कल तक थे जो भरे-भरे-
वो हैं अब रीते,
रामभरोसे हों या
प्यारेलाल घसीटे।
प्रजातंत्र के जन-गण-मन ये,
ठुमरी, ठप्पा और भजन ये;
सद्गुण सदाचार जानें कब,
कहाँ व्यतीते।
महासमर में (काले-पीले) गोरे-नारे,
अपनों से अपने ही हारे;
दूर खड़े हैं अपने बौद्धिक
लगा पलीते।
छोटों से ले बड़े-बड़ों तक,
प्रभुजी मिलान कोई सुरक्षित।
ऐसे विकट समय में
हमको कौन प्रतीते?