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कल न बदला वो आज बदलेगा / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
कल न बदला वो आज बदलेगा
वक़्त अपना मिज़ाज बदलेगा
आदमी की यहाँ तलाश करो
आदमी ही समाज बदलेगा
फूल माला बने रहे जो तुम
कैसे काँटों का ताज बदलेगा
वो ही अफ़सर है,वो ही चपरासी
कैसे सब कामकाज बदलेगा
वो जो ख़ुद को बदल नहीं सकता
वो भला क्या रिवाज बदलेगा
रोग बढ़ता ही जा रहा है अब
जाने वो कब इलाज बदलेगा