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कल सारे पुरपेच रास्ते हमने तय किए / शहंशाह आलम

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कल सारे पुरपेच रास्ते हमने तय किए
कल अपने हिस्से की तमाम धूप और रोटी
अपने निगरां से हमने छीन ली और
दरख़्त के ठेकेदारों से कह दिया कि ये सारे दरख़्त
तुम्हारे लिए नहीं हैं, हमारी अमानत हैं

हमने इतनी मिट्टी और इतनी ईंटें चुर्राईं कि
हमारे वास्ते भी एक घर बन सके
हमारे आंगन में भी चांद अपनी शफ़्फ़ाफ़ रौशनी बिखेरे
हमारे घर भी एक ऐसा कमरा हो
जहां बैठकर यार-दोस्तों के साथ
बारीक़-से-बारीक़ मसलों पर बहस कर सकें
लेकिन ख़ुदा ने मिट्टी और ईंटें चुराने के एवज़
हमारे सर अज़ाब लिख दिया
हमने परवाह नहीं की
हमारी इस हिम्मत के एवज़ मूसीक़ार ने
नई धुनें बनाईं और हमारी नज़र कर दी

कल तमाम विशेषज्ञ इसी में उलझे रहे कि
हमारे भीतर इतनी ताक़त कहां से आ जाती है और
हम इंक़लाब में ही एतमाद क्यूं दिखलाते हैं हर मौसम में

कल हमने पाया कि हम ऐसी जगह क़ैद हैं
जहां सिर्फ़ ख़ुश्की-ही-ख़ुश्की थी हमारी निगाहों में
कई शख़्स ख़ून से लथपथ पड़े थे मगर
हमारी पेशानी पर ख़ौफ़ के साए नहीं थे बल्कि
हमारी आंखें आग उगल रही थीं क्योंकि
हमारी पेशानी शायर की पेशानी थी
हमारी आंखें शायर की आंखें थीं

कल जो भी तय हुआ यही तय हुआ कि
मिट्टी और्र ईंटें हम चुराते रहेंगे
उनके भ्रष्ट आचरण को हलाक करते रहेंगे
हम अग़वा के ख़िलाफ़ खड़े होते रहेंगे
हम हत्या के ख़िलाफ़ खड़े होते रहेंगे
हम क्रूरता के ख़िलाफ़ खड़े होते रहेंगे
हम बाज़ार के ख़िलाफ़ खड़े होते रहेंगे
हम तमाम रिश्ते को मज़बूत करते रहेंगे

कल जो भी तय हुआ यही तय हुआ।