भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कळपती पत्त्यां / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भायली बादळी नै
कळपती रोंवती
देख‘र
बिरछ री पत्त्यां भी
रोवण लागगी,

बादळी तो
थक‘र थमगी
पण पत्त्यां
आंसूंड़ा
ढळकांवती रैई
घणीं ताळ तांई