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कवन चढ़ली गाछी, भरि देह लगलैन माछी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह के समय आम-महुआ ब्याहने की प्रथा है। आम और महुए के पेड़ों को धागे से लपेटा जाता है। इस विधि को संपन्न करते समय स्त्रियाँ विभिन्न स्त्रियों का नाम ले-लेकर गाली देती हैं।

कवन चढ़ली गाछी, भरि देह लगलैन माछी।
छोड़ छोड़ रे माछी, अब नै चढ़बौ गाछी॥1॥
कवन ठोकथि चिपरी<ref>गोबर के पाथे हुए चिपटे टुकड़े; उपली</ref>, भरि देह लगलैन पिपरी<ref>लाल रंग का चीटा, जो पेड़ पर रहता है</ref>।
छोड़ छोड़ रे पिपरी, आब नै ठोकबौ चिपरी॥2॥
कवन रान्हथिन<ref>पका</ref> खिरनी<ref>खीर</ref>, भरि देह लगलैन बिरनी<ref>बर्रे; तितैया नामक कीड़ा</ref>।
छोड़ छोड़ रे बिरनी, आब नै रान्हबौ खिरनी॥3॥

शब्दार्थ
<references/>