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कविकुल को अभिशाप लगे हैं / शिवम खेरवार

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कविकुल को अभिशाप लगे हैं,
समय बताओ कैसे बदले?
भाग्य बताओ कैसे बदले?

हमने सबके अपशब्दों से,
एक सुगंधित पुष्प बनाया।
पर वह पुष्प तुम्हारे मन को,
लगता है बिल्कुल ना भाया।

तुमने अपनों-सा मुँह मोड़ा,
ईश्वर! क्यों ऋतुओं से बदले।

परहित में चौराहों पर भी,
हमने अपने सिर कटवाए.
घोर कुहासे अनुनय करके,
सम्बंधों में से हटवाए.

दुखी हुए जब खुशियों के क्षण,
ऐसे-तैसे-वैसे बदले।

हमसे ही विश्वास हमारा,
किसे पता कब उठ जाएगा।
सुनो! तीन लोकों के स्वामी,
धरा जगत सूनी पाएगा।

नौ रस भी मर जाएँगे यदि,
उनके 'रामभरोसे' बदले।