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कविगण / रामकृष्‍ण पांडेय

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कविगण
जब कविताएँ लिखते हैं
तो कविगण ही उन्हें छापते हैं
अपनी-अपनी पत्रिकाओं में
फिर, कविगण ही उन्हें पढ़ते हैं
उन पर गोष्ठियाँ करते हैं
और सिद्ध करते हैं
उन कविताओं को
अपने समय की महान कविताएँ
और कविगणों को
अपने समय के महान कवि
तत्पश्चात
कविगणों के नामों पर
स्थापित पुरस्कारों से
कविगणों की ही समितियाँ
पुरस्कृत करती हैं कविगणों को
कविगणों द्वारा आयोजित समारोहों में
जिन्हें अपनी उपस्थिति से
गरिमापूर्ण बनाते और मानते हैं कविगण

पुनश्च -- एक

कविगणों की
गोष्ठियों और समारोहों की
रिपोर्ट भी प्रकाशित करते हैं
कविगण ही अख़बारों में
फिर उन्हें पढ़ते हैं कविगण ही

पुनश्च -- दो

कविकर्म पूरा नहीं होता
प्रकाशकों के बग़ैर
उन्हीं से विज्ञापन लेकर
कविगण निकालते हैं पत्रिकाएँ
उन्हीं की सहायता से
कविगण करते हैं गोष्ठियाँ-समारोह
जिनमें उन्हीं के नाम पर पुरस्कार भी देते हैं
कविगणों को
बदले में प्रकाशक उनका संकलन छापते हैं

पुनश्च -- तीन

कविगण जिन्हें कवि कहते हैं
वही कवि होते हैं
बाक़ी होते हैं अकवि
कविगण जिसे कविता कहते हैं
वही कविता होती है
बाक़ी कविता नहीं होती

पुनश्च -- चार

कुछ कवि जनकवि होते हैं
क्योंकि वे कवियों के लिए नहीं
जनता के लिए कविता लिखते हैं
जनकवियों की कविताएँ नहीं छपतीं
क्योंकि वे पत्रिकाएँ नहीं निकालते
जनकवियों की कविताएँ महान नहीं होतीं
क्योंकि वे उन पर गोष्ठियाँ नहीं करते
उन्हें समारोहों में पुरस्कृत नहीं करते

पुनश्च -- पाँच

कविगण अपनी पत्रिकाओं में
जनकवियों की कविताएँ नहीं छापते
उन पर गोष्ठियाँ नहीं करते
उनको पुरस्कृत नहीं करते
उनके सम्मान में समारोह नहीं करते
अगर ऐसा किया तो
कविगण, कविगण नहीं रह जाएँगे ।

पुनश्च -- छह

कविगणों की तरह
नहीं होते हैं जनकवि
हाव-भाव से
वेश-भूषा से
बातचीत से ही कवि
वे आम आदमी की ही तरह
फटेहाल होते हैं ।