आज तीसरे दिन भी
दाँतों में दर्द है
और दाँत
मेरे अस्तित्व को
अपने खोढ़रे में
घुसाड़ लेना चाहता है
अखिल ब्रह्मांड सहित
मुझे दु:ख है
कविताएँ दाँत नहीं हैं।
आज तीसरे दिन भी
दाँतों में दर्द है
और दाँत
मेरे अस्तित्व को
अपने खोढ़रे में
घुसाड़ लेना चाहता है
अखिल ब्रह्मांड सहित
मुझे दु:ख है
कविताएँ दाँत नहीं हैं।