भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविताओं की सुध नहीं / फ़्योदर त्यूत्चेव / वरयाम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविताओं की तुम्हें अब सुध नहीं
ओ मेरी आत्मजा रूसी भाषा,
पकी फ़सल तैयार है काटे जाने के लिए,
अलौकिक वह अवसर आ गया है नज़दीक अब ।

ढाल बन गया है असत्य आज
किन्हीं दैवी इच्छाओं के बल,
विनाश की दे रहा है धमकियाँ
पूरा विश्व नहीं, बल्कि पूरा नरक !

तुम्हारे लिए वे तैयार कर रहे हैं कारागार,
तुम्हारे लिए अपयश की वे कर रहे हैं भविष्यवाणी,
पर, आनेवाले श्रेष्ठ युगों की
तुम्हीं हो भाषा, जीवन और आलोक !

ओ, इसी में निहित है वह कठिन परीक्षा —
इस अन्तिम और निर्णायक संघर्ष में
धोखा न देना तुम स्वयं अपने को
और दोषमुक्त सिद्ध होना ईश्वर के सामने ...

1854
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                  Федор Тютчев
          Теперь тебе не до стихов…

Теперь тебе не до стихов,
О слово русское, родное!
Созрела жатва, жнец готов,
Настало время неземное…

Ложь воплотилася в булат;
Каким-то божьим попущеньем
Не целый мир, но целый ад
Тебе грозит ниспроверженьем…

Все богохульные умы,
Все богомерзкие народы
Со дна воздвиглись царства тьмы
Во имя света и свободы!

Тебе они готовят плен,
Тебе пророчат посрамленье, —
Ты — лучших, будущих времен
Глагол, и жизнь, и просвещенье!

О, в этом испытанье строгом,
В последней, в роковой борьбе,
Не измени же ты себе
И оправдайся перед Богом…

1854 г.