भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता- अकिंचन / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
होता है जब-जब
भावों का मर्दन
होता है तब-तब
कविता का नर्तन।
तेरे अपने होंगे सच
कविता- अकिंचन
बैठी हुई देहरी पर
खटकाती आतुर मन
उसके अपने ही सच
और अपने ही क्रन्दन
तभी होते है संतुष्ट
उपहारों में सूनेपन
बजती रही साँकल
भाया न अभिरंजन
बोलती रही वह सच
झुठला दी गई सजन...